दिनांक:02/10/2023
रिपोर्ट by: शराफत सैफी
महिला आरक्षण बिल पर बहस करते हुए कांग्रेस नेताओं का ओबीसी कोटे की पैरवी करना तो सही है. पर पार्टी को यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी तक ओबीसी कम्युनिटी के लिए उनके द्वारा क्या किया गया।
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने बुधवार को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पर बोलते हुए कहा कि बिना ओबीसी कोटा के महिला आरक्षण बिल अधूरा है. राहुल गांधी ने अपने भाषण में यह भी आरोप लगाया कि सरकार ओबीसी समुदाय को हाशिये पर रखने का काम कर रही है.उन्होंने सवाल उठाया कि ‘देश को 90 सचिव संभाल रहे हैं और इसमें से कितने ओबीसी से आते हैं? सिर्फ 3 ओबीसी से आते हैं. ये 5 प्रतिशत ही बजट कंट्रोल करते हैं.’ उन्होंने इसे ओबीसी समुदाय का अपमान बताया.
राहुल गांधी ने जो बताया वो बिल्कुल सही है. पर राहुल गांधी को पहले अपनी पार्टी कांग्रेस में ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारी को देखना चाहिए था. कांग्रेस का इतिहास दलितों के साथ तो न्याय करता नजर आता है पर ओबीसी को कांग्रेस ने हमेशा हाशिये पर ही रखा है. दरअसल कांग्रेस पार्टी ने ब्राह्मणों-दलितों और मुसलमानों के वोट से देश पर कई दशक राज किया है. देश भर में मंडलवाद का उभार कांग्रेस के ओबीसी विरोधी नीतियों के ही चलते हुआ. 80-90 के दशक में पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व दिलाने के नाम पर उत्तर भारत में मुलायम की सपा, मायावती की बसपा, लालू की राजद जैसी कई पार्टियों का जन्म कांग्रेस विरोध की धुरी पर ही हुआ. आइ ये आज के और बीते कल के दौरान बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस में ओबीसी हालात पर एक नजर डालते हैं.
1-कांग्रेस कार्यसमिति में कितने ओबीसी
कांग्रेस कार्यसमिति का अभी पिछले महीने ही पुनर्गठन हुआ है. राहुल को शायद ये पता नहीं होगा कि उनकी पार्टी के संगठन में ओबीसी की क्या हिस्सेदारी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में नई गठित की गई 84 सदस्यीय कांग्रेस कार्य समित का विश्लेषण करने से पता चलता है कि इसमें अनुसूचित जाति के 12 सदस्य, अनुसूचित जनजाति के 4 और अन्य पिछड़ा वर्ग के 16 सदस्य शामिल हैं. कमेटी में अल्पसंख्यक वर्ग के 9 लोग शामिल हैं. वहीं, 15 महिलाओं और सामान्य वर्ग के 43 लोगों को इसमें जगह मिली है. इस तरह यहां पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी केवल 19 फीसदी ही है.
यही नहीं उत्तर प्रदेश के संगठन में अभी भी सवर्णों की हिस्सेदारी सबसे अहम है. ऐसे समय जब सभी पार्टियों के अध्यक्ष ओबीसी हैं, कांग्रेस को सवर्ण वोटों का इस तरह का मोह है कि राज्य में एक दलित अध्यक्ष को हटाकर एक सवर्ण अजय राय की ताजपोशी की गई है.
2-मंडल कमीशन को कांग्रेस ने लटकाए रखा, चार राज्यों में सरकार लेकिन ओबीसी चीफ सेक्रेटरी कितने?
ओबीसी सचिवों की सख्या बताते हुए राहुल गांधी यह भूल जाते हैं कि मंडल कमीशन को अगर कांग्रेस सरकार सालों तक दबाये नहीं रखती तो देश में आज कितने ओबीसी आईएएस बने होते और उनमें से कितने सेक्रेटरी लेवल तक पहुंचते. लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस नेता दिब्येंदु अधिकारी द्वारा पूछे गए एक सवाल के उत्तर में कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया था कि आरक्षित वर्ग के अधिकारी अक्सर अधिक उम्र में सेवा में प्रवेश करते हैं, इसलिए कई ऐसे अधिकारी उस समय तक सेवा से सेवानिवृत्त हो जाते हैं जब उनके बैच को अतिरिक्त सचिव और सचिव के पद पर पैनल में शामिल करने पर विचार किया जाता है. इसी तरह ओबीसी कैटेगरी के उम्मीदवार 1990 के बाद थोक के भाव में आना शुरू हुए. दरअसल केंद्र में जब एक गैरकांग्रेसी सरकार गठन हुआ तो मंडल कमीशन का रिपोर्ट लागू हो सका. एक आईएएस को सचिव बनने में कम से कम 30 साल तो लगते ही हैं. इस तरह कोई सरकार चाहकर भी अभी बहुत से सेक्रेटरी बनाने में सफल नहीं हो सकती।
एक बात और है, कांग्रेस की 4 राज्यों में सरकार है लेकिन एक में भी ओबीसी चीफ सेक्रेटरी नहीं है. अमित मालवीय ने ट्वीट करते हुए लिखा कि कांग्रेस की चार प्रदेशों (राजस्थान, छतीसगढ, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक) में आज भी सरकार है लेकिन एक में भी ओबीसी चीफ सेक्रेटरी नहीं है.
3-मुख्यमंत्री बनाने में भी बीजेपी के आगे कांग्रेस रही फिसड्डी
राहुल को एक बार कांग्रेस का इतिहास देखना चाहिए. कांग्रेस राज में ओबीसी के कितने नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया पार्टी ने. उत्तर प्रदेश का इतिहास बताता है कि कांग्रेस ने केवल सवर्ण मुख्यमंत्री ही बनाए. यूपी में जब-जब गैरकांग्रेस की सरकार बनी तभी मुख्यमंत्री ओबीसी तबके का बन सका. बीजेपी ने अब तक जितने मुख्यमंत्री बनाए हैं, उनमें से 30.9 फीसदी ओबीसी हैं. जबकि कांग्रेस द्वारा बनाए गए मुख्यमंत्रियों में सिर्फ 17.3 फीसदी ओबीसी हैं. अन्य दलों के लिए ये आंकड़ा 28 फीसदी है. इस तरह बीजेपी ने अब तक 68 मुख्यमंत्री बनाए हैं, जिनमें 21 ओबीसी थे. जबकि कांग्रेस ने आजादी के बाद से 250 मुख्यमंत्री बनाए जिसमें 43 ही ओबीसी हैं. ये सिर्फ संयोग नहीं है. ये सोची समझी रणनीति थी. ओबीसी और सवर्ण वोट पाने की. कांग्रेस को भरोसा रहा कि ब्राह्मण-दलित और मुसलमान का वोट तो उसे मिलना ही है.
4-ओबीसी सांसद बनाने में कांग्रेस से आगे बीजेपी
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों पर सवर्णों की पार्टी का ठप्पा रहा है. पर बीजेपी ने अपने आपको किस तरह ओबीसी की पार्टी बनाया है यह आंकड़े गवाही देते हैं. संगठन हो या सरकार, हर जगह ओबीसी बहुतायत में हो गए हैं. भारतीय जनता पार्टी के कुल सांसदों में 113 अन्य पिछड़ा वर्ग, 43 अनुसूचित जनजाति और 53 अनुसूचित जाति हैं. इस तरह भाजपा के 37.2% लोकसभा सांसद ओबीसी, 14.1% एसटी और 17.4% एससी थे. अगर आरक्षित संसद सदस्यों को छोड़कर सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 60% भाजपा सांसद उच्च जातियों के नहीं हैं. यही नहीं कुल गैर आरक्षित सांसदों का आधा हिस्सा 50% (113) ओबीसी हैं.
5-यूपी में सर्वाधिक मंत्री और विधायक ओबीसी समुदाय से
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ पर ठाकुर होने का ठप्पा लगने लगा तो भाजपा ने उनके नीचे ओबीसी नेताओं को उभार कर खड़ा कर दिया. 2022 में दुबारा सत्ता में आई बीजेपी ने सबसे अधिक ओबीसी विधायक दिये. यही नहीं योगी कैबिनेट में मंत्री भी ओबीसी समुदाय के ज्यादा हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छोड़कर कुल 52 सदस्यीय मंत्रिमंडल के अलावा 18 कैबिनेट मंत्रियों, 14 राज्यमंत्रियों (स्वतंत्र प्रभार) और 20 राज्यमंत्रियों ने शपथ ली थी. योगी कैबिनेट में 21 सवर्ण समुदाय को जगह मिली है तो 20 ओबीसी मंत्री बने हैं. दलित समुदाय के 9 मंत्री बनाए गए हैं तो एक मुस्लिम, एक सिख और एक पंजाबी को जगह मिली है इसी तरह उत्तर प्रदेश में चुनकर आए विधायकों की संख्या और जाति का विश्लेषण बताता है कि बीजेपी से सबसे अधिक पिछड़ी जातियों के विधायक चुनकर आए हैं. 368 हिंदू विधायकों में 151 पिछड़ी जातियों के विधायक हैं. इनमें बीजेपी गठबंधन से ही करीब 90 विधायक हैं, सपा गठबंधन के 60 और 1 विधायक कांग्रेस के टिकट पर चुना गया है. इसी तरह 131 विधायक ऊंची जातियों के चुने गए हैं. इनमें से 117 भाजपा गठबंधन, 11 सपा गठबंधन और 1-1 बीएसपी, कांग्रेस और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के हैं. इस तरह सवर्ण विधायकों की तुलना में करीब 22 विधायक ओबीसी के ज्यादा हैं.
स्टार भारत न्यूज़ 24 की रिपोर्ट।