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बीएल संतोष के साथ दो दिन चली मीटिंग, यूपी में हार की अंतर्कथा, नेताओं ने बताई व्यथा

लोकसभा चुनाव में भाजपा को तीसरी बार सरकार बनाने का मौका तो मिला, लेकिन यूपी से कम हुई सीटों ने उसे बहुमत से दूर कर दिया। 2019 में जिस उत्तर प्रदेश से उसे 62 सीटें मिली थीं, वहां आकड़ा 33 पर ठहर गया तो ऊपर से नीचे तक संगठन में हलचल है। एक तरफ उत्तर प्रदेश में संगठन के पेच कसे जा रहे हैं तो वहीं राष्ट्रीय नेतृत्व भी रिपोर्ट ले रहा है। इसी कड़ी में दो दिनों के लिए संगठन महामंत्री बीएल संतोष लखनऊ पहुंचे और उन्होंने नेताओं के साथ मीटिंग ली। शनिवार और रविवार को बीएल संतोष ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बैठकें कीं। इस दौरान नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक ने हार के कारण गिनाए।

इनमें एक बड़ा कारण यह रहा कि लगातार कई बार से सांसद चुने जा रहे नेताओं के खिलाफ जनता में नाराजगी थी। इसके बाद भी जब उन्हें टिकट दे दिया गया तो कार्यकर्ता निराश हो गए और उन्होंने मेहनत नहीं की। इससे पहले से ही नाराज चल रही जनता के बीच भाजपा के लोग ही नहीं पहुंच सके और समस्या बढ़ गई। इसके अलावा कुछ कार्यकर्ताओं ने बीएल संतोष को बताया कि नेताओं का जमीनी वर्कर्स के साथ अच्छा समन्वय नहीं रहा। इसके चलते भी समस्या बढ़ गई। क्षेत्रीय अध्यक्षों और प्रभारियों ने बीएल संतोष के साथ मीटिंग में कहा कि विपक्ष ने आरक्षण छिनने और संविधान बदलने की जो अफवाह फैलाई थी, उसका भी असर हुआ। नेताओं ने कहा कि हम उनके इस नैरेटिव की सही काट नहीं निकाल सके।

नेताओं ने बताया- किन वोटरों के छिटकने से हो गया नुकसान

नेताओं का कहना था कि विपक्ष का यह नैरेटिव ऐसा काम किया कि गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा हमारे हाथ से चला गया। बीते कई सालों से यह वोट हमारे पास आ रहा था, लेकिन उस बार बड़ा हिस्सा छिटका तो इसका असर तमाम सीटों पर दिखा। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार रविवार को बीएल संतोष ने दलित समाज के विधायकों और मंत्रियों के साथ मीटिंग की।

बीएल संतोष ने सबकी बात सुनी, कहा कुछ नहीं; बस रिपोर्ट बनाई

मीटिंग के दौरान बीएल संतोष ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का फीडबैक लिया। इस दौरान उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन धैर्य से सबकी बात सुनते रहे। कई सीटों पर सांसदों और विधायकों की आपसी कलह का भी जिक्र हुआ और कहा गया कि यह भी हार की एक बड़ी वजह रही। नेताओं का कहना था कि इससे कार्यकर्ताओं में ही भ्रम की स्थिति पैदा हुई और जमीनी स्तर पर भी खेमेबंदी के हालात हो गए। आपसी कलह का असर ऐसा रहा कि चुनाव से ठीक पहले कार्यकर्ता निष्क्रिय हो गए। प्रदेश में अफसरशाही के हावी होने और भाजपा नेताओं के ही कामों को रोके जाने से भी गलत संदेश जाने की बात सामने आई।

NEWS SOURCE : livehindustan

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