Prayagraj News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि कोई व्यक्ति भले ही महिला की सहमति से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता हो, लेकिन यदि महिला भयभीत या भ्रमित होकर ऐसी सहमति देती है तो ऐसे संबंध को दुष्कर्म ही माना जाएगा। न्यायमूर्ति अनिस कुमार गुप्ता ने यह टिप्पणी करते हुए आगरा के राघव कुमार नामक एक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। राघव ने दुष्कर्म के मुकदमे को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था। उस पर आरोप है कि उसने एक महिला को शादी का झांसा देकर उसके साथ दुष्कर्म किया था। राघव ने इस मामले में पुलिस की ओर से दाखिल आरोप-पत्र को रद्द करने का अदालत से अनुरोध किया था।
दोनों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बने: वकील
वकील ने यह भी दलील दी कि दोनों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बने, जो लंबे समय तक जारी रहे, इसलिए आरोपी राघव के खिलाफ दुष्कर्म का मामला नहीं बनता। वहीं दूसरी ओर, राज्य सरकार के वकील ने याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि दोनों पक्षों के बीच शारीरिक संबंध की शुरुआत धोखाधड़ी पर आधारित है और राघव ने बलपूर्वक संबंध बनाए, जिसके लिए महिला की ओर से कोई सहमति नहीं थी, इसलिए यह दुष्कर्म का स्पष्ट मामला है। अदालत ने दोनों पक्षों की जिरह सुनने और साक्ष्यों पर गौर करने के बाद 10 सितंबर को दिए अपने निर्णय में कहा, “चूंकि याचिकाकर्ता द्वारा शुरुआती संबंध धोखाधड़ी, धमकी के साथ और महिला की इच्छा के विरुद्ध स्थापित किए गये, इसलिए प्रथम दृष्टया यह आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत अपराध का मामला बनता है। तदनुसार, इस अदालत को (आरोपी के खिलाफ) आपराधिक मुकदमा रद्द करने का कोई उचित कारण नहीं दिखता।”