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उत्तर प्रदेश अलीगढ़ : अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर आज सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई, क्या है पूरा मामला।

रिपोर्ट – नाज आलम ( सोर्स एक्स प्लेटफ़ॉर्म ) 

 

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी स्टेटस यानी अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल है या नहीं, इसी सवाल को केंद्र में रखकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज से एक अहम सुनवाई करने जा रही, कोर्ट यह भी तय करेगा कि किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा किन पैरामीटर्स को ध्यान में रख दिया जा सकता है,  यह भी जानें कि किस तरह इस केस में मोदी सरकार और मनमोहन सरकार का स्टैंड अलग रहा है।

 

 

उत्तर प्रदेश अलीगढ़ : ऐतिहासिक शब्द पर इन दिनों चहुंओर जोर है, सामान्य फैसला भी इस धड़ल्ले से ऐतिहासिक बता दिया जाता है कि ऐतिहासिक फैसले को ऐतिहासिक कहते हुए इक पल को सोचना पड़ जाता है कि ऐतिहासिक को ऐतिहासिक ही कहा जाए या कुछ और. खैर, ये सब प्रवचन हैं, मूल बात पर आते हैं आज से सचमुच में एक ऐतिहासिक सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो रही है, ऐतिहासिक कई मायनों में।

पहला, सात जजों की एक संविधान पीठ इस साल के दूसरे हफ्ते में ही एक सुनवाई करने को बैठ रही है। आमतौर पर इतनी बड़ी बेंच बैठने का रिवाज अब नहीं नजर आता,  आखिरी दफा अगर हम याद करें तो एक पिछले साल एक इतनी बड़ी बेंच बैठी थी जो साल 2017 के बाद पहली दफा हकीकत बनी थी, दूसरी बात ये कि यह मामला किसी एक विश्वविद्यालय का नहीं बल्कि यह देश के हजारों अल्पसंख्यक विश्वविद्यालयों का भविष्य तय करेगा, कैसे बताएंगे आपको आगे, पहले थोड़ा पीछे चलते हैं।

AMU: मनमोहन से लेकर मोदी सरकार तक।

ये साल 2004 था, देश में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार सत्ता में थी। सरकार ने एक पत्र में कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक अल्पसंख्यक संस्थान है, इसलिए वह अपनी एडमिशन पॉलिसी यानी विश्वविद्यालय के दाखिले की नीति में बदलाव कर सकता है,  अगले ही साल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने तय कर दिया कि अब से पोस्ट ग्रैजुएट मेडिकल कोर्स की 50 फीसदी सीटें मुस्लिम कैंडिडेट्स के लिए आरक्षित रहेंगी, AMU का मानना था कि चूंकि वह एक अल्पसंख्यक संस्थान है इसलिए यह उसका अधिकार है, इलहाबाद हाईकोर्ट में एएमयू के फैसले को डॉक्टर नरेश अग्रवाल और अन्य ने चुनौती दी।

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हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया, कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल नहीं है, उसके बाद विवाद बढ़ा। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और तत्कालीन यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया और अदालत से गुहार लगाई कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला गैरवाजिब है मामला चलता रहा, साल आया 2016. यूपीए की सरकार के दिन पूरे हो चुके थे।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार हुकूमत में थी, इस सरकार ने कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर सरकार के पुराने स्टैंड से दूरी बना ली,  भारत सरकार का कहना था कि वह एएमयू को एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान नहीं मानती।

सुप्रीम कोर्ट: 7 जजों की बेंच क्या तय करने जा रही।

12 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई हुई. तीन जजों की पीठ, जिसकी अगुवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई कर रहे थे, उन्होंने इस मामले को सात सदस्यीय संविधान पीठ को भेज दिया। अब चार साल के बाद वह सात सदस्यीय पीठ इस मामले को सुनने जा रही है. सुनवाई में शामिल होने वाले जज हैं – चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिसरा, जस्टिस के वी विश्वनाथन, इससे पहले इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल भी वरिष्ठता के आधार पर शामिल थे। पर 25 दिसंबर 2023 को उनके रिटायर होने के बाद नए सिरे से बेंच का गठन हुआ और जस्टिस के वी विश्वनाथन को इस बेंच का हिस्सा बनाया गया, अब आते हैं इस सवाल पर कि कोर्ट क्या तय करने जा रहा है।

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सात जजों की पीठ आज से जिन बातों पर एक राय बनाने की कोशिश करेगी कि संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा किस पैमाने को ध्यान में रखकर दिया जा सकता है।  साथ ही सर्वोच्च अदालत को यह भी तय करना है कि संसदीय प्रक्रिया से वजूद में आए किसी भी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा भी सकता है या नहीं, यही दूसरा सवाल का जवाब तय करेगा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का दर्जा हासिल है या नहीं? यह केस कोर्ट में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का प्रशासन लड़ रहा है। कोर्ट ने अभी ने अल्पसंख्यक दर्जे के सवाल पर आखिरी आदेश में यह कहा हुआ है कि जब तक संविधान पीठ अपना फैसला नहीं सुना देती तब तक इस मामले में यथास्थिति कायम रहेगी,  अब आते हैं उस आर्टिकल पर जिसका इस सुनवाई में बार-बार जिक्र हो रहा है, आर्टिकल 30 इस सुनवाई का मुख्य आधार है।

आर्टिकल 30 क्या है।

संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है कि वह न सिर्फ अपना शैक्षणिक संस्थान बना सकते हैं बल्कि उसको अपने तरीके से चला सकते हैं। अनुच्छेद 30 के पहले क्लॉज में कहा गया है कि जो भी अल्पसंख्यक हैं, चाहें वह भाषा के आधार पर हों या फिर धर्म के आधार पर, वे अपनी मर्जी के मुताबिक शिक्षण संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं, इन संस्थानों के प्रशासन का अधिकार भी उन्हीं के जिम्मे हो सकता है। वहीं इस आर्टिकल का दूसरा क्लॉज कहता है कि अनुच्छेद 30 के तहत जो संरक्षण है, वह केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषायी) तक ही सीमित है, इसको और नागरिकों के किसी भी वर्ग तक जो किअनुच्छेद 29 के तहत है, विस्तारित नहीं किया जा सकता।

1967 का फैसला क्या पलट जाएगा य।

अब सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 30 के तहत एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का पैमाना तय करना है। तय यह भी होगा कि 1920 में जिस अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना मुसलमानों की शिक्षा के लिए हुई, उसको अल्पसंख्यक का दर्जा हासिल था या नहीं, शुरुआत में दरअसल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में यह व्यवस्था थी कि केवल मस्लिम समुदाय के लोग ही यूनिवर्सिटी के गवर्निंग बॉर्डी में शामिल हो सकते हैं, हालांकि फिर इसमें कुछ बदलाव हुए और गैर मुस्लिम को भी गवर्निंग बॉडी में शामिल करने की इजाजत मिल गई।

बाद में 1967 में एएमयू को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ‘अजीज भाषा’ केस में एक महत्त्वपूर्ण फैसला दिया जिसमें कहा गया कि एएमयू इसलिए अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है क्योंकि उसकी स्थापना एक लेजिस्लेटिव प्रक्रिया के जरिये हुई है, सुप्रीम कोर्ट जाहिर सी बात है जब आज से इस मामले की सुनवाई करेगी तो उसकी निगाह में ‘अजीज भाषा’ केस भी होगा। चूंकि अजीज भाषा केस में पहले ही इस मामले को लेकर पांच सदस्यीय संविधान पीठ फैसला दे चुकी है, लिहाजा अब एक उससे भी बड़ी सात सदस्यीय पीठ इस मामले को सुन रही है।

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